शिक्षाओं और दर्शन


1995 से लेकर के अब तक 30 वर्षों तक, परम पूज्य आचार्य भगवान 108 विभव सागर जी महाराज ने एक आध्यात्मिक यात्रा आरम्भ की जिसमें लाखों किलोमीटर की यात्रा की गई। इस यात्रा के माध्यम से वे विभिन्न प्रांतों में जन-जन से जुड़े, जैसे राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, कर्नाटक आदि। जहाँ जहाँ भी आचार्य श्री के कदम पड़े, वहाँ उनके उपदेशों और विचारों ने जन-जन को लाभ पहुंचाया।

आचार्य श्री के उपदेश में अहिंसा का महत्व विशेष रूप से उजागर किया गया, जिन्होंने अहिंसा को परम धर्म मानकर जीवन जीने की सलाह दी। उन्होंने "जियो और जीने दो" का संदेश दिया और धर्म के माध्यम से सबके सुख की प्राप्ति का मार्ग बताया। उन्होंने समाज में जातिवाद, संतवाद, पंथवाद, परंपरावाद के खिलाफ उठकर धर्म को सभी के हित के लिए मुकरत किया।

आचार्य श्री का आशीर्वाद सूर्य की किरणों की भांति सभी के लिए है। जैसे हवाएं सभी के लिए होती हैं, सूर्य का प्रकाश सभी के लिए होता है, चंद्रमा की चांदनी सभी के लिए होती है, नदियों का जल सभी के लिए होता है, उसी तरह आचार्य श्री का ज्ञानगंगा सभी के लिए है, और उनका आशीर्वाद सभी के लिए है। इसीलिए उनके उपदेशों से सभी लोग लाभान्वित हुए हैं।

2003 में, आचार्य श्री ने परभणी, महाराष्ट्र में प्रथम राम कथा का आयोजन किया, जिससे हजारों लोगों को लाभ मिला। 2008-2009 में, एक और राम कथा ने हजारों लोगों को व्यसन मुक्त बनाया। अहिंसा दीक्षा के माध्यम से, उन्होंने परिवारों को बदला, समाज को बदला, और सुख-शांति का संचार किया।

इस वेबसाइट का उद्देश्य है परम पूज्य आचार्य भगवान 108 विभव सागर जी महाराज के समाज में किए गए योगदान को प्रकट करना, उनके उपदेशों, आध्यात्मिक यात्रा, और व्यक्तियों और समुदायों पर उनके प्रभाव को हाइलाइट करना।